सच्ची दीपावली ….

मुझे कपड़े दिलाना ये खिलाना वो खिलाना ,
यहाँ घुमाना वहाँ ले जाना या नई कोई फ़िल्म दिखाना ,
नहीं मुझे ऐसे दिवाली नहीं मनाना |
हॅसना गाना और थोड़े पैसे बचाना ,
उससे एक भुखे को खाना खिलाना ,
इस बार दिवाली को मुझे ऐसे ही है मनाना |
इस दिन अपने अवगुण ढूँढ ,
मुझे इन्हे है दूर भगाना |
अपनी ग़लतियों को मान , ना दोहराने की कसमें खाना |
अपने सपनो को पावन कर , उम्मीदों के दीप जलाना |
ऐसे ही रोशनी के पर्व को रोशन कर के है मुझे मनाना |

 मेरे स्कूल के दिनों की एक कविता (1999)

सच्ची दीपावली ….” पर 8 विचार

  1. वाह बहुत सुन्दर
    बाल मन में ऐसे भाव का आना सहज नहीं होता
    और क्युकी ये आप ने उस मासूम उम्र में लिखी है इसलिए और ज्यादा प्यारी लगी है
    सुन्दर अभिव्यक्ति
    बहुत बहुत बधाई

  2. वाह बहुत सुन्दर
    बाल मन में ऐसे भाव का आना सहज नहीं होता
    और क्युकी ये आप ने उस मासूम उम्र में लिखी है इसलिए और ज्यादा प्यारी लगी है
    सुन्दर अभिव्यक्ति
    बहुत बहुत बधाई

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