मुझे कपड़े दिलाना ये खिलाना वो खिलाना ,
यहाँ घुमाना वहाँ ले जाना या नई कोई फ़िल्म दिखाना ,
नहीं मुझे ऐसे दिवाली नहीं मनाना |
हॅसना गाना और थोड़े पैसे बचाना ,
उससे एक भुखे को खाना खिलाना ,
इस बार दिवाली को मुझे ऐसे ही है मनाना |
इस दिन अपने अवगुण ढूँढ ,
मुझे इन्हे है दूर भगाना |
अपनी ग़लतियों को मान , ना दोहराने की कसमें खाना |
अपने सपनो को पावन कर , उम्मीदों के दीप जलाना |
ऐसे ही रोशनी के पर्व को रोशन कर के है मुझे मनाना |
मेरे स्कूल के दिनों की एक कविता (1999)
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
सरस शब्दों सें सच्ची दिवाली मनायी है तुमनें ।
शाय़द ऐसे ही किसी दीपोत्सव से ‘दीप’ का प्रार्दुभाव हूआ है ।
दीपावली पर प्रचलित ढर्रे पर लिखी हुईं कविताओं से अलग सरल-सुबोध भाषा में
एक नया दृष्टिकोण लेकर अच्छा प्रयास है। बधाई स्वीकारें।
वाह बहुत सुन्दर
बाल मन में ऐसे भाव का आना सहज नहीं होता
और क्युकी ये आप ने उस मासूम उम्र में लिखी है इसलिए और ज्यादा प्यारी लगी है
सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत बहुत बधाई
वाह बहुत सुन्दर
बाल मन में ऐसे भाव का आना सहज नहीं होता
और क्युकी ये आप ने उस मासूम उम्र में लिखी है इसलिए और ज्यादा प्यारी लगी है
सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत बहुत बधाई
pata nahi kaise aapke ight pe aa gaya,kuchh kavitaein bhi padhee.aab jaaney ka dil hi nahi karta…
sacchi deepawali bahut achhi hai.
Happy diwali diwali ki aapko bhut bhut bdhai
sir mai bhi aapki tarah kabita likhne ki kosish karta hoon